कोटे में कोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया है राज्य सरकार है अब अनुसूचित जाति यानी कि ऐसी और अनुसूचित जनजाति यानी कि एसटी के रिजर्वेशन में कोटे में कोटा दे सकेंगे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक तरफ जहां सराहना की जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ कई बड़े सवाल भी खड़े हो रहे हैं तो चलिए इस वीडियो में समझते हैं कि क्या है यह पूरा फैसला इसका आधार और इस अहम फैसले के क्या मायने हैं
इसके साथ इस फैसले के बाद राज्य सरकार के पास क्या पावर आ गई है सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बड़ा फैसला सुनाया अदालत ने 20 साल पुराना अपना ही फैसला पलट दिया तब कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियां खुद में एक समूह है उसमें शामिल जातियों के आधार पर और बटवारा नहीं किया जा सकता कोर्ट ने अपने नए फैसले में राज्यों के लिए जरूरी हिदायत भी दी है कोट कहा है कि राज्य सरकार है मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकतीइसके लिए दो शर्ते होंगी पहली शर्त तो यह की अनुसूचित जाति के भीतर किसी भी जाति को 100% कोटा नहीं दिया जा सकता और दूसरी यह के अनुसूचित जाति में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता उत्तर होना चाहिए यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की साथ जजों की संविधान पीठ का है
इसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति और उसमें शामिल जातियों के आधार पर बांटना संविधान के अनुच्छेद 341 के खिलाफ नहीं हैतो चलिए अब समझ लेते हैं कि इस पूरे फैसले का आधार क्या है अदालत ने फैसला उन याचिकाओं पर सुनाया है जिनमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण का फायदा उनमें शामिल कुछ ही जातियों को मिला है इससे कई जातियां पीछे रह गई हैं उन्हें मुख्य धारा मिलने के लिए कोट में कोटा होना चाहिए ऐसे दलील के आधे 2004 का फैसला आ रहा था जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों को सब कैटिगरी में नहीं बांट सकते इस फैसले पर जस्टिस बी गवाही ने कहा कि ज्यादा पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है
ऐसी और एसटी वर्ग में सिर्फ कुछ ही लोग आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता और एससी-एसटी में ऐसी श्रेणियां हैं जिन्हें सदियों से ज्यादा उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है राज्यों को सब कैटिगरी देने से पहले एससी और एसटी श्रेणियां के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक पॉलिसी लानी चाहिएसही मायने में समानता दिए जाने का यही एकमात्र तरीका है
जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी उसी तरह लागू होता है जैसे यह ओबीसी पर लागू होता है मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने देश में दलित वर्गों के लिए आरक्षण का पुरजोर बचाव किया और कहा कि सरकार एससी-एसटी आरक्षण के बीच सब कैटिगरी के पक्ष में है तो आपको यह समझा देते हैं कि कोट के अंदर कोटा आखिर होता क्या है
कोटा के भीतर कोटा का मतलब है आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर एक अलग आरक्षण व्यवस्था लागू करना यह मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आरक्षण का लाभ समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद समूह तक पहुंचे जो आरक्षण प्रणाली के तहत भी उपेक्षित रह जाते हैं इसका उद्देश्य आरक्षण के बड़े समूह के भीतर छोटे कमजोर वर्गों का अधिकार सुनिश्चित करना है ताकि वह भी आरक्षण का लाभ उठा सके एग्जांपल के लिए आपको बतादेते हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर अलग-अलग समूह को आरक्षण दिया जा सकता है ताकि उन समूह को ज्यादा प्रतिनिधित्व और लाभ मिल सके जो सामाजिक और आर्थिक रूप से ज्यादा वंचित है सुप्रीम कोर्ट के स्पेशल से साफ हो गया है कि राज्य सरकारी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटिगरी बन सकती है जिससे मूल और जरूरतमंद क्रांतिकारी को आरक्षण का ज्यादा फायदा मिल सकेगा हालांकि अगर राज्य एक या ज्यादा श्रेणी को अनुसूचित जाति के तहत 100% आरक्षण देने का निर्णय लेती है तो यह छेड़छाड़ के समाप्त होगा क्योंकि यह अन्य श्रेणियां को लाभ से वंचित करने
जैसा होगा सरकार के पास जातियों का डाटा होना चाहिए इस डाटा का आधार जमीनी सर्वे होना चाहिए इसी आधार पर कोटे में कोटा वाली जाति का निर्धारण किया जाना चाहिए क्योंकि आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछले वर्गों को अवसर प्रदान करना है लेकिन अक्सर बड़ेसमूह के भीतर कुछ समूह ज्यादा लाभ उठा लेते हैं जिससे अन्य उपेक्षित रह जाते हैं जैसे कि ओबीसी आरक्षण में विभाजन कई राज्यों में ओबीसी यानी कि अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण को ज्यादा पिछड़े और काम पिछड़े समूहों में विभाजित किया गया है ताकि ज्यादा पिछले वर्गों को अधिक लाभ मिल सके कुछ राज्यों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को भी विभाजित किया गया है ताकि इनमें भी सबसे कमजोर वर्ग को प्राथमिकतादी जा सके