कमरछठ त्यौहार क्यों मनाया जाता है, और इसका महत्व

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इस पर्व से एक और पौराणिक कथा जुड़ी हुई है ऐसी मान्यता है कि वसुदेव देवकी के 6 पुत्रों को कंस के द्वारा करवा में ही वध कर देने के बाद देवकी ने अपने सातवें शिशु के जन्म के समय ऋषि नारद की सलाह पर अपने पुत्र की रक्षा और उसकी दीर्घायु के लिए हर षष्ठी के निमित्त व्रत रखा था और तब योग माया ने देवकी के गर्भ से शिशु को खींचकर वासुदेव की पत्नी रोहिणी के गर्भ में डाल दिया था और उसके बाद देवकी के गर्भ से संकरण होकर रोहिणी के गर्भ से बलराम जी पैदा हुए थे तो इस प्रकार से इस पर्व को श्री कृष्ण के भरता बलराम जी के जन्म उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है तो दोस्तों हाल सृष्टि पर्व के महत्व को जानकर आपको कैसा लगा यह आप हमें कमेंट करके जरूर बताइए 

नमस्कार दोस्तों कंपटीशन कमेटी में आप सभी का फिर से बहुत-बहुत स्वागत है और मैं हूं खुशबू साहू आज हम बात करने वाले हैं प्रकृति पूजा के महापर्व कमरछठ या हल छठ की इस पर वह को भादो मां के कृष्ण पक्ष की सृष्टि को मनाया जाता है और इसीलिए इस पर्व को हल षष्ठी भी कहा जाता है पशुपालन योग के पहले की है अर्थात उस समय मानव कबीले में रहा करते थे और कबीलाई युग में आदिमानव का समाज महिलाओं को मातृशक्ति का रूप मानता था वह शक्ति स्वयं की रक्षा करने में सक्षम मानी जाती थी कभी लेकिन मुखिया हुआ करती थी और सुरक्षित स्थानों में रहा करती थी उसे कल में भोजन वन उपज और पशुओं के शिकार से प्राप्त हुआ करता था जिसे प्राप्त करने के लिए कभी लेकर पुरुष ही बाहर जाया करते थे

जिनकी रक्षा का भार वाहन की माता के ऊपर होता था इसीलिए इतिहास लिखने के पहले के इतिहास में अर्थात प्रागैतिहासिक काल में पूरे कबीले की भोजन की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष करने वाले पुरुषों की रक्षा हेतु वाहन की माताएं उपवास रखती थी और वे जंगल से जो भी वस्तु लेकर आया करते थे उसे माताएं भोजन के रूप में ग्रहण किया करती थी और तब से ही इस पर्व को मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई होगी क्योंकि इस पर्व में श्रम से पैदा हुए अनाज की नहीं बल्कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहार की पूजा की जाती है

जैसे महुआ के वृक्ष के फूल पत्ते और महुआ का वृक्ष वनों में बहुतायत रूप में पाया जाता है नहीं उगाया जाता बल्कि यह बिना हल जोत ही खेतों की मद में तालाब के किनारे और अन्य स्थानों पर उग जाता है यह दुनिया का पहला अनुयोग रहा होगा क्योंकि कृषि युक्त बहुत बाद में आया था

भैंस की दूध और दही की आदिम काल में दूध देने वाले पशु के रूप में भैंसी होगी जिसके दूध को पहली बार मानव समाज ने चखा होगा बिना श्रम के पैदा होने वाले भाजी और पानी की जिसे जीवन का प्रतीक माना जाता है

ग्रामीण अंचल में इस दिन इस पर्व से संबंधित जिसके भी घर जो भी वस्तुएं होती है उसे महिलाओं के द्वारा आपस में मिल बनाकर सामूहिक रूप से इस पर्व को मनाया जाता है मानो पूरा गांव ही एक परिवार हो इस दिन महिलाएं सुबह से ही सूर्यास्त से पहले उठकर महुआ की दातुन कर और स्नान कर पुत्र प्राप्ति पुत्र की सुख समृद्धि और पुत्र की दीर्घायु के लिए हल षष्ठी देवी के निमित्त व्रत रखती है फिर दिन में सूर्यास्त से पहले महिलाओं के द्वारा सामूहिक रूप से गांव की चौपाल में या फिर घर के आंगन में दो बनावटी तालाब सागरी बनाया जाता है और इसे झारबरी और काशी के फूल से और बर और पलाश के पेड़ों के पत्ते एवंचढ़ाया जाता है और उसके बाद शिव पार्वती के समकक्षों के इनकी पूजा की जाती है और हर सस्ती देवी की 6 कथा सुनाई जाती है पूजन के बाद माताएंअपने 

 पूजन के बाद माताएं अपने संतान के पीठ में छह बार पोता मरती है और उसे अपने आंचल से पहुंचती है यह माता के द्वारा पुत्र को दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक माना जाता है यह पोता वास्तव में 6 रंग के छोटे कपड़ों के टुकड़े होते हैं जिसे पशर चावल के पेश में डुबाया जाता है और दोनों में रखकर उसे सागरी में डाला जाता है और उसके बाद फिर इसे शिव पार्वती के समक्ष कर इसकी पूजा की जाती है

इसके बाद माता और परिवार के सभी लोगों के द्वारा सामूहिक रूप से प्रसाद के रूप में महुआ के पत्ते के दोनों में पास हर चावल की खिचड़ी भैंस की दूधिया दही और छह प्रकार की बाजी को ग्रहण किया जाता है ऐसी मान्यता है कि इस दिन माताएं ना हर जुटे हुए भूमि के अनाज को ग्रहण करती है और ना ही इस भूमि पर चलती है तो इस प्रकार से हल सस्ती के पर्व को पूरे ग्रामीण अंचल में सामूहिक रूप से महिलाओं के द्वारा प्रकृति के पूजा और पुत्र के दीर्घायु के कामना हेतु धूमधाम से मनाया जाता है 

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